Monday, October 8, 2018

में बैलेट पेपर पर पहली बार एकसाथ आए सभी प्रत्याशियों के नाम

पेशक डेस्क.  देश को आजाद हुए करीब 15 साल हो गए थे और पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बने भी। मगर 1962 आते-आते नेहरू की आभा तो बरकरार थी, लेकिन कांग्रेस को लेकर कहीं-कहीं रोष भी था। इस तरह तीसरा आम चुनाव कई मायनों में खास रहा। वैसे यह चुनाव दो चर्चित मुकाबलों के लिए याद किया जाता है। पहला जवाहरलाल नेहरू के लोकसभा क्षेत्र फूलपुर में था। यहां उनके विरुद्घ समाजवादी डॉ. राममनोहर लोहिया चुनाव मैदान में उतरे थे। चुनाव से पहले डॉ. लोहिया ने कहा था कि मैं नेहरू के खिलाफ चुनाव सिर्फ इसलिए लड़ रहा हूं क्योंकि उन्होंने जनता को गोवा विजय (कुछ ही माह पहले गोवा को पुर्तगालियों से आजाद कराया था) की घूस दी है। यह राजनीतिक कदाचार है।

हालांकि चुनाव में नेहरू को 1 लाख 18 हजार 931 वोट मिले, जबकि डॉ. लोहिया को मात्र 54 हजार 360 वोट। समाजवादी नेता रघु ठाकुर कहते हैं कि 1962 का चुनाव लड़ने से पहले इलाहाबाद में डॉ. लोहिया की बड़ी आमसभा हुई। उसी सभा में किसी युवक ने उन्हें नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ने की सलाह दी थी। जब डॉ. लोहिया का चुनाव लड़ना तय हुआ तो पंडित नेहरू ने उन्हें पत्र लिखा (यह पत्र रघु ठाकुर के पास अभी भी है) कि अगर आप चुनाव लड़ोगे तो मैं चुनाव प्रचार नहीं करूंगा। मगर इस विशाल जीत के लिए नेहरू को तीन सभाएं करनी पड़ीं। हालांकि बाद में लोहिया 1963 में एक उपचुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। दूसरा चर्चित मुकाबला नॉर्थ बॉम्बे सीट पर हुआ, जहां कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जेबी कृपलानी अपनी ही पार्टी के नेता और रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन के खिलाफ खड़े हो गए थे। वजह थी लद्दाख के हिस्से वाले अक्साई चिन पर चीन का कब्जा। हालांकि कृपलानी एक लाख 45 हजार से अधिक वोटों से चुनाव हार गए।


चुनावों पर पहली बार दिखा क्षेत्रीय दलों का प्रभाव
  •  चुनाव आयोग ने पहली बार मतदान केंद्रों पर उम्मीदवारों के अलग-अलग पर्चे रखवाना बंद कर एक ही पर्चे पर सभी प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिह्न का तरीका शुरू किया। यह देश में ईवीएम के आने के पहले तक लगातार जारी रहा।
  • फर्जी वोटिंग रोकने के लिए मतदाताओं के नाखून पर विशेष स्याही का निशान लगाना बड़े पैमाने पर शुरू किया गया।
  • शशि शर्मा की किताब ‘राजनीतिक समाजशास्त्र की रूपरेखा’ के मुताबिक 1952 और 1957 के आम चुनाव में कई निर्वाचन क्षेत्र द्विस्तरीय थे। यानी एक निर्वाचन क्षेत्र से दो उम्मीदवार चुनकर आते थे। इस कारण बड़ी संख्या में मत  अवैध घोषित हो जाते थे। इसके बाद 1962 के चुनावों से सभी निर्वाचन क्षेत्रों से एक ही उम्मीदवार निर्वाचित होने लगा। 
  • मूंदड़ा कांड आजादी के बाद भ्रष्टाचार का बड़ा मामला था। इसे उठाने वाले कांग्रेस के ही फिरोज गांधी थे। मूंदड़ा कांड का जिम्मेदार तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णामाचारी को माना गया। उन्होंने इस्तीफा भी दिया। लेकिन 1962 में मद्रास प्रांत की तिरुचेंदुर सीट से निर्विरोध जीतकर लोकसभा पहुंच गए।
  • पंजाब में क्षेत्रीय दल शिरोमणी अकाली दल ने 3, मद्रास प्रांत में डीएमके ने 7, केरल में मुस्लिम लीग ने 2 सीटें जीतीं। राम राज्य परिषद ने 2, गणतंत्र परिषद ने उडीसा में 2, हरियाणा लोक समिति ने 1 और हिंदू महासभा ने एक सीट जीती।
फैक्ट फाइल
1962 में कुल लोकसभा सीटें- 494
कुल उम्मीदवार- 1985
मतदान प्रतिशत- 55.42
कांग्रेस ने जीतीं- 361 सीटें
पिछले चुनाव से- 10 सीटें कमनक्सल प्रभावित बस्तर में लोगों में मतदान को लेकर काफी उत्साह है। यह बात वोटर जागरूकता अभियान में सामने आई। इस दौरान यहां के लोगों ने बीजापुर और सुकमा कलेक्टर को बताया कि वोट डालने के दौरान उंगली पर स्याही न लगाई जाए, वरना उसे देखकर नक्सली मार देंगे। हम वोटिंग करना चाहते हैं, लेकिन नक्सलियों का डर है।

अफसरों ने चुनाव आयोग से इस मामले में गाइडलाइंस बनाने और समाधान निकालने को कहा है। इनका मानना है कि अगर ऐसा होता है, तो बस्तर में मतदान में इजाफा होगा। बस्तर की 12 सीटों पर पहले चरण में 12 नवंबर को मतदान होना है। अफसरों से मिले सुझाव के बाद चुनाव आयोग इस पर विचार कर रहा है। पिछले चुनावों की तरह इस बार भी माओवादी संगठनों ने बस्तर में चुनाव के बहिष्कार की घोषणा की है। इसके लिए जगह-जगह पोस्टर भी लगाए गए हैं।  

हाथ चेक करते हैं नक्सली: मतदान के बाद नक्सली गांव-गांव में लोगों के हाथ चेक करते हैं। किसी के हाथ पर स्याही मिले तो परेशान किया जाता है, हत्या तक करने के मामले सामने आए हैं। इसलिए ग्रामीण वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लेते। बीते चुनावों में बस्तर के अंदरूनी जिले सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा और नारायणपुर में 100 से अधिक ऐसे बूथ सामने आए थे, जिनमें वोटिंग 1 फीसदी से कम रही।

री-पोल को जीत बताते हैं : बेहद कम वोटिंग होने पर आयोग ऐसे केंद्रों को नक्सल प्रभाव वाले मानकर री-पोल कराता है और नक्सली इसे जीत के रूप में प्रचारित करते हैं। इसी माहौल को बनाए रखने के लिए इस बार भी माओवादियों ने चुनाव बहिष्कार की घोषणा की है। वहीं, अफसर बस्तर के भीतरी इलाकों में जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को मतदान करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

मतदान के दिन ही फैसला लेंगे : सीईओ सुब्रत साहू का कहना है कि नक्सल क्षेत्र में वोटर की उंगली पर स्याही न लगाने का सुझाव आया है। यह मामला अभी विचाराधीन है, आयोग मतदान की तारीख के समय ही अंतिम फैसला लेगा।