Friday, August 31, 2018

थाईलैंड जाना इतना क्यों पसंद कर रहे हैं भारतीय

थाईलैंड विदेशी पर्यटन से पैसा कमाने के मामले में इस साल फ़्रांस को भी पीछे छोड़ते हुए दुनिया का तीसरा देश बन गया है. फ़ाइनैंशियल टाइम्स
थाईलैंड के पर्यटन में बूम के पीछे भारत है. भारत के बाद चीन का भी इसमें योगदान है. चीन के कई ऐसे एयरपोर्ट हैं जहां से थाईलैंड जाने में तीन से चार घंटे के वक़्त लगते हैं. पिछले साल 14 लाख भारतीय थाईलैंड गए और यह उसके पहले के साल से 18.2 फ़ीसदी ज़्यादा है.
2010 से थाईलैंड जाने वाले भारतीयों हर वर्ष औसत 10 फ़ीसदी बढ़े हैं. थाईलैंड आने वाले पर्यटकों की संख्या में भारत 2017 में पांचवे नंबर पर था जबकि 2013 में सातवें नबर पर था.
के शोध के मुताबिक़ थाईलैंड को इस मुकाम पर भारतीयों ने लाया है.
2017 में थाईलैंड को पर्यटन से 58 अ

रब डॉलर का राजस्व हासिल हुआ. इस साल 3.5 करोड़ पर्यटक थाईलैंड आए थे. यही गति रही तो पाँच सालों के भीतर थाईलैंड स्पेन को पीछे छोड़ दूसरा स्थान हासिल कर सकता है और फिर अमरीका ही उससे आगे रह जाएगा. पर्यटन उद्योग थाईलैंड के लिए सबसे लाभकारी साबित हो रहा है.
फ़ाइनैंशियल टाइम्स का कहना है अगर पर्यटन उद्योग को निकाल दिया जाए तो उसकी अर्थव्यवस्था 3.3 फ़ीसदी की दर से ही आगे बढ़ती. 2018 की पहली छमाही में थाईलैंड की जीडीपी में पर्यटन उद्योग का योगदान 12.4 फ़ीसदी था.
यह थाईलैंड की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के बराबर है. द

वर्ल्ड ट्रैवेल एंड टूरिज़म काउंसिल का अनुमान है कि थाईलैंड की जीडीपी में घरेलू और विदेशी पर्यटन का योगदान 21.2 फ़ीसदी रहा था.
नई दिल्ली से थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक जाने में चार से पाँच घंटे का वक़्त लगता है. जो भारतीय अपने देश में फ्लाइट से सफर करते हैं उनके लिए बैंकॉक का किराया भी बहुत ज़्यादा नहीं है. आज की तारीख़ में में आठ से दस हज़ार के किराए में फ्लाइट से बैंकॉक पहुंचा जा सकता है.
थाईलैंड अपने ख़ूबसूरत बीच के लिए जाना जाता

है. थाईलैंड के बीच की ख़ूबसूरती भी दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करती है. भारतीयों के लिए थाईलैंड से ख़ूबसूरत कोई बीच पास में नहीं है.
नजदीक और सस्ता होने के कारण भी भारतीय थाईलैंड को ख़ूब पसंद करते हैं. भारत का निम्न मध्य वर्ग यूरोप का खर्च वहन नहीं कर सकता है ऐसे में थाईलैंड एक मजबूत विकल्प के रूप में सामने आता है.
भारत के साथ थाईलैंड का सांस्कृतिक रिश्ता भी है. थाईलैंड के लोग बौद्ध धर्म का पालन करते हैं. ऐसे में भारत थाईलैंड के लिए कोई अजनबी देश नहीं है.
दक्षिण-पूर्वी एशिया में इंटर करने के लिए थाईलैंड प्रमुख देश है. थाईलैंड के ज़रिए पूरे उपद्वीप को सस्ते में घूमा जा सकता है. थाईलैंड में भारतीय दिसंबर से जुलाई महीने के

बीच ख़ूब जाते हैं.
भारतीयों में नीले पानी और समुद्र तट की सफ़ेद रेत को लेकर काफ़ी मोह रहता है. भारतीयों के लिए थाईलैंड का वीज़ा पाना बहुत आसान है. यहां तक कि ऑनलाइन भी थाईलैंड के वीज़ा के लिए आवेदन किया जा सकता है.
भारत गर्मी तड़पाने वाली होती है जबकि थाईलैंड का मौसम बिल्कुल अनुकूल होता है. अधिकतम तापमान 33 तक जाता है. भारतीयों को थाईलैंड का स्पाइसी स्ट्रीट फूड भी ख़ूब रास आता है. भारतीय यहां आईस्क्रीम और सीफूड जमकर खाते हैं. बैंकॉक में कई बड़े बुद्ध मंदिर हैं.

 थाईलैंड टूरिस्ट वेबसाइट का कहना है कि बड़ी संख्या में वैसे भारतीय भी यहां आते हैं जो सेक्स की चाहत मन में संजोए रहते हैं.
हालांकि इस वेबसाइट का कहना है कि भारतीय और अरब के पुरुषों की छवि थाईलैंड में बहुत ठीक नहीं है.
वैसे थाईलैंड में ज़्यादातर भारतीय पुरुषों की छवि ये भी है ये ग़रीब मुल्क से हैं इसलिए ज़्यादा पैसे लेकर नहीं आते हैं.

Wednesday, August 29, 2018

भारतीय लड़कियां चीनी लड़कों से शादी क्यों नहीं करतीं

और बहस का मुद्दा है- भारतीय लड़कियां चीनी लड़कों से शादी क्यों नहीं करतीं.
सबसे पहले ये सवाल चीनी वेबसाइट झिहू पर साल भर पहले उछाला गया था. इस वेबसाइट पर लोग सवाल पूछते हैं और यूज़र्स उसका अपने हिसाब जवाब देने की कोशिश करते हैं.
पिछले कुछ दिनों से इस सवाल पर फिर से बहस शुरू हो गई है. अभी तक 12 लाख लोग इस सवाल पर अपनी निगाह डाल चुके हैं.
दोनों ही देशों में शादी एक अहम मुद्दा है. लिंगानुपात में फ़र्क की वजह से ये मामला और पेचीदा हो जाता है.
चीन में महिलाओं के मुक़ाबले 34 लाख पुरूष अधिक हैं. इसकी वजह चीन की वन-चाइल्ड पॉलिसी है, जिसे साल 2015 में बंद किया गया था.
दूसरी ओर भारत में महिलाओं की कुल संख्या से 37 लाख पुरूष अधिक हैं.
भारत में दहेज पर पाबंदी के बावजूद लड़की के मां-बाप कैश के अलावा गहने और बाक़ी सामान लड़के के परिवार को देते हैं. लेकिन चीन में इससे उलट दुल्हन को क़ीमती भेंट देने का रिवाज़ है.
झिहू नाम की इस वेबसाइट पर किसी ने लिखा है कि चीन में आमतौर सगाई के लिए एक लाख युआन यानी क़रीब दस लाख रूपए उपहार के तौर पर दिए जाते हैं.
वेबसाइट पर किसी ने एक लंबा पोस्ट करते हुए लिखा है, "ये किसी भी भारतीय किसान की 10 साल की कमाई है. अपनी बेटियों की शादी के लिए भारी ख़र्च के बजाय भारतीय परिवार चीन में उनकी शादी कर मोटी कमाई कर सकता है."
पोस्ट में आगे लिखा है, "चीन के गांव भारत से बेहतर हैं और अगर किसी लड़की की शादी शहरी चीनी से होती है तो ये फ़र्क और भी कई गुना बढ़ जाता है. यही वजह है कि इस मामले में मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही है. चीनी मर्द वियतनाम, बर्मा और यहां तक कि यूक्रेन की लड़कियां से शादी कर रहे हैं लेकिन भारतीय लड़कियों से नहीं."
दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक रिश्ते बेहतर हो रहे हैं लेकिन भारतीय लड़की और चीनी लड़के की जोड़ी अब भी कम ही देखने को मिलती है.
झिहू के कमेंट सेक्शन में दहेज पर गर्मागर्म बहस हो रही है.
लोग अपनी टिप्पणियों में कह रहे हैं कि दहेज की मोटी रकम की वजह से लोगों की जान तक चली जाती है.
बीजिंग विश्वविद्याल में पढ़ रहे हे वेई ने झिहू पर चल रही बहस की भाषा पर आपत्ति जताई है.
मंगलवार को हे ने लिखा कि भारत में शादियां सिर्फ़ पैसों के लिए ही नहीं होतीं.
आमिर ख़ान की फ़िल्म दंगल का मिसाल देते हुए उन्होंने लिखा, "भारत और चीन के शहरी मध्यमवर्ग में कोई ख़ास फ़र्क नहीं है. ये वर्ग दोनों ही देशों में बिंदास है और इस वर्ग में से कोई भी किसी विदेशी व्यक्ति से शादी के लिए तैयार हो जाएगा. "
कुछ लोग ये चर्चा भी कर रहे थे कि भारत में लिंगानुपात की स्थिति चीन से भी बदतर है.
एक यूज़र ने लिखा है कि भारतीय लड़कियों के चीन लड़कों के साथ शादी न करने की एक वजह ये है कि असल ज़िंदगी में इन दोनों की भेंट ही नहीं होती है.
उन्होंने लिखा है, "कई भारतीय पुरूष चीन और हॉन्ग कॉन्ग में काम करते हैं लेकिन वहाँ भारतीय महिलाओं की संख्या न के बराबर है. इसके विपरीत अफ़्रीका में कई चीनी मर्द काम करते हैं जिसकी वजह से, इनमें से कई अफ़्रीकी लड़कियों से शादियां कर रहे हैं."
फ़ेंग नाम के यूज़र ने लिखा है, "भारतीय महिलाओं पर पारिवारिक मूल्यों को ढोने का बोझ भी रहता है. साथ ही भारतीय मर्द भी काफ़ी स्मार्ट होते हैं. उनके सामने चीनी मर्दों की एक नहीं चल सकती."
कुछ लोगों ने तो ये भी कहा कि भारतीय अपनी बेटियों की शादी चीनी मर्दों की तुलना में गोरे लोगों से करवाना पसंद करेंगे.

Sunday, August 26, 2018

夏季极端天气肆虐全球

由于世界各地破纪录的热浪和其他极端天气事件,今年夏天将被我们铭记。对某些人来说,这个时刻让他们真正相信极热天气将更加常见,会成为他们未来的一部分,因为他们亲眼目睹炎热的天气直接或间接地造成数以千计的死亡。

极端之夏

在中国,弥漫全球的热浪打破了北京的记录,达到了39摄氏度,是50年来的最高纪录。与此同时,7月22日以来西北宁夏回族自治区的贺兰山地区连降暴雨,超过5200位当地居民被疏散。

本周,林火在希腊造成80多人死亡。今夏惊人的干旱将植被都变成了易燃的干柴,时速124公里的狂风大大助长了林火的气焰,使其“每分钟都在改变着方向”。

英国的夏季以多雨著称,但今年高温造成的火灾已经创造了消防部门的记录。7月,下议院环境审计委员会警告说:“如果政府不采取任何行动,到2050年每年英国将会有7000人死于炎热。”

气候变化是元凶吗?

东安格利亚大学的气候变化科学与政策教授科林·勒·克勒说:“有多项研究已经将人为气候变化与自然循环区分开来。这些研究表明,迄今世界很多地方发生热浪的风险因气候变化增加了一倍多。”“热浪愈演愈烈与人为气候变化的关系确信无疑。这早就被预测到了,而且预测结果正一一兑现。寒流的减少和降雨量增加也是一样。(国际气象组织的IMO)其他工作也在进行中。”—— 加文·施密特的推特

热浪的连锁效应

极热还会引发其他天气事件,如超级风暴、龙卷风、洪水和林火等。

世界资源研究所是一家致力于促进可持续发展的全球研究机构,它指出:“气候变化还造成海洋变暖,助长海岸风暴的力量。更麻烦的是,变暖的大气中会含有更多水汽,而风暴系统中水汽增加的结果就是降雨增加。”

这些预言正在成为现实。越南经历了一系列风暴,上个月的暴雨引发山洪和滑坡,造成24人死亡。本周热带风暴“山神”登陆,又有27人死亡。今夏印度有12个邦遭受洪灾,数千人死亡、5.5万座房屋被毁,8.1万公顷农田被淹。

中国南部地区的暴雨也引发严重洪水,长江及其支流因此泛滥,造成数十人死亡、数百万人疏散。

多米诺效应


极端天气带来了一连串相关压力,干旱、基础设施和耕地的损失,而当它们接连发生时,恢复系统就被彻底压垮了。

美国天气预报机构Accuweather的气象学家肯·克拉克说:“只要大火烧光大片土地,严重的风暴就会在过火区域和附近造成更多洪灾和泥石流。”

从6月底到7月中旬,日本已经有222人死于洪水和滑坡。在这之后,滔天热浪接踵而至,这场自然灾害造成30人死亡,阻碍了救援和恢复工作的进行。

今夏的极端天气表明了采取行动应对气候变化为何如此重要。

正如勒·克勒教授总结的那样:“把气候变化限制在2摄氏度以内,会大大减少热浪带来的变化。但是,业已出现的变化将持续数百年。”

Friday, August 17, 2018

जब वाजपेयी ने खुद कश्मीर का ज़िक्र छेड़ा

वर्ष 1999 में वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा को कवर करने वाले बीबीसी उर्दू के आसिफ़ फ़ारुक़ी, मीनार-ए-पाकिस्तान वाले वाकये को याद करते हुए कहते हैं, "वाजपेयी ने बताया था कि उनसे कई लोगों ने कहा कि आप वहां जाएंगे तो पाकिस्तान पर मुहर लग जाएगी लेकिन वाजपेयी साहब ने उन लोगों को कहा कि भाई पाकिस्तान पर तो मुहर पहले ही लग चुकी है. पाकिस्तान तो बन चुका, उसे हमारी मुहर की ज़रूरत नहीं है.
''शाही किले में खुद उन्होंने कश्मीर का ज़िक्र छेड़ा. ये तब बड़ी बात थी कि भारत का प्रधानमंत्री पाकिस्तान के शाही किले में खड़ा होकर कश्मीर की बात करे, जबकि ये वो वक्त था जब कोशिश रहती थी कि कश्मीर लफ़्ज़ किसी की जुबां पर ना आए.''साल 2001 में जब आगरा समिट हुआ तो उससे पहले हालात काफ़ी बिगड़ चुके थे. मेरे साथ जिन पत्रकारों ने लाहौर भी कवर किया था, हम सबको लग रहा था कि वैसी विनम्रता नहीं थी, एक तरह का ईगो था दोनों देशों के नेताओं में.''
''वाजपेयी की अपनी मजबूरियां भी थीं. वो भरोसा नहीं कर पा रहे थे. साल 1999 में ही करगिल हुआ था. फिर भी साथ बैठकर टेबल पर खाना खाया. ये भी एक स्टेट्समैन होने की ही निशानी थी.''
बात कोई दो दशक पहले की है. आगरा में वाजपेयी-मुशर्रफ शिख़र वार्ता का आयोजन हुआ था. मेज़बान और मेहमान के खाने-पीने के बंदोबस्त का ज़िम्मा मेरे मित्र जिग्स कालरा को सौंपा गया था. मेनू बड़ी सावधानी से तैयार किया गया.
जिग्स ने मुझे ख़बरदार किया, "गुरू! वाजपेयी जी खाने के ज़बरदस्त शौक़ीन हैं- कुछ कसर न रह जाए. फिर मुल्क की इज़्ज़त का भी सवाल है. पाकिस्तानियों को नाज़ है अपनी लाहौर की खाऊ गली पर. हमें उन्हें यह जतलाना है कि सारा बेहतरीन खाना मुहाजिरों के साथ सरहद पार नहीं चला गया. इसके अलावा कुछ नुमाइश साझा विरासत की भी होनी चाहिए."
ख़ुशक़िस्मती यह थी कि पूर्व प्रधानमंत्री ने अपनी पसंद-नापसंद थोपने का हठ नहीं पाला. बस शर्त रखी कि खाने का ज़ायका नायाब होना चाहिए. इस बात का हमारी पूरी टीम को गर्व है कि जो भी तश्तरियाँ उस गुप्त वार्ता वाले कमरे में भेजी जातीं, वह ख़ाली लौटती थीं.
लाने ले-जाने वाले मज़ाक़ करते थे कि मुशर्रफ़ तो तनाव में लगते हैं पर पंडित जी निर्विकार भाव से संवाद को भी गतिशील रखते हैं और चबैना भी निबटा रहे हैं.
वाजपेयी जी का अच्छा खाने-पीने का शौक़ मशहूर था. वह कभी नहीं छिपाते थे कि वह मछली-माँस चाव से खाते हैं. शाकाहार को लेकर जरा भी हठधर्मी या कट्टरपंथी नहीं थे. दक्षिण दिल्ली में ग्रेटर कैलाश-2 में उनका प्रिय चीनी रेस्तराँ था जहाँ वह प्रधानमंत्री बनने से पहले अकसर दिख जाते थे.
मिठाइयों के वह ग़ज़ब के शौक़ीन थे. उनके पुराने मित्र ठिठोली करते कि ठंडाई छानने के बाद भूख खुलना स्वाभाविक है और मीठा खाते रहने का मन करने लगता है.
बचपन और लड़कपन ग्वालियर में बिताने के बाद वह विद्यार्थी के रूप में कानपुर में रहे थे. भिंड मुरैना की गज्जक, जले खोए के पेड़े के साथ-साथ ठग्गू के लड्डू और बदनाम क़ुल्फ़ी का चस्का शायद तभी उनको लगा था.