Tuesday, December 3, 2019

उद्योगपति मुकेश अंबानी के कंधे पर हाथ रखे हुए राहुल बजाज

राहुल बजाज ने अपने जीवन में जो मुक़ाम हासिल किये हैं, उनका श्रेय वो अपनी पत्नी रूपा घोलप को भी देते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार करण थापर को वर्ष 2016 में दिए एक इंटरव्यू में राहुल बजाज ने कहा था कि 1961 में जब रूपा और मेरी शादी हुई तो भारत के पूरे मारवाड़ी-राजस्थानी उद्योगपति घरानों में वो पहली लव-मैरिज थी. रूपा महाराष्ट्र की ब्राह्मण थीं. उनके पिता सिविल सर्वेंट थे और हमारा व्यापारी परिवार था तो दोनों परिवारों में तालमेल बैठाना थोड़ा मुश्किल था. पर मैं रूपा का बहुत सम्मान करता हूँ क्योंकि उनसे मुझे काफ़ी कुछ सीखने को मिला.
राहुल बजाज ना सिर्फ़ एक बार राज्यसभा के सांसद रह चुके हैं, बल्कि भारतीय उद्योग परिसंघ यानी सीआईआई के अध्यक्ष रहे हैं, सोसायटी ऑफ़ इंडियन ऑटोमोबिल मैन्युफ़ैक्चरर्स (सियाम) के अध्यक्ष रहे हैं, इंडियन एयरलाइंस के चेयरमैन रह चुके हैं और भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान 'पद्म भूषण' प्राप्त कर चुके हैं.
उनके इसी अनुभव का हवाला देते हुए वरिष्ठ पत्रकार टी के अरुण कहते हैं कि राहुल बजाज की बातों का एक वज़न है जिसे यूँ ही दरकिनार नहीं किया जा सकता.
वो बताते हैं कि "1992-94 में हुए इंडस्ट्री रिफ़ॉर्म के ख़िलाफ़ भी राहुल बजाज खुलकर बोले थे. उनका तर्क था कि इससे भारतीय इंडस्ट्री को धक्का लगेगा और देसी कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा मुश्किल हो जाएगी."
राहुल बजाज ने भारतीय उद्योगपतियों की तरफ से यह बात उठाई थी कि विदेशी कंपनियों को भारत में खुला व्यापार करने देने से पहले देसी कंपनियों को भी बराबर की सुविधाएं और वैसा ही माहौल दिया जाए ताकि विदेशी कंपनियाँ भारतीय कंपनियों के लिए ख़तरा ना बन सकें.
हालांकि टी के अरुण कहते हैं कि उस वक़्त भी सरकार से बैर ना लेने के चक्कर में कम ही उद्योगपति इसपर खुलकर बोल रहे थे और इस बार भी बजाज का बयान कम ही लोगों में बोलने की हिम्मत डाल पाएगा.
साल 2014 में जब नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी तब राहुल बजाज ने कहा था कि उन्हें पीएम मोदी से काफ़ी उम्मीदें हैं क्योंकि यूपीए-2 एक बड़ी असफलता रहा और जिसके बाद मोदी के पास करने को बहुत कुछ होगा.
लेकिन पाँच साल के भीतर राहुल बजाज की यह सोच काफ़ी बदली हुई नज़र आती है.
अर्थशास्त्री मोहन गुरुस्वामी इसपर अपनी राय बताते हैं. वो कहते हैं, "भारतीय उद्योगपतियों को मनमाने ढंग से व्यापार करने की आदतें लगी हुई हैं. भारत में छूट लेकर विदेशों में निवेश करना, नया ढर्रा बन चुका है. लोग कर्ज़ लौटाने को लेकर ईमानदार नहीं हैं. कुछ कानून सख़्त किये गए हैं तो उन्हें डर का नाम दिया जा रहा है. जबकि डर की बात करने वाले वही हैं जिन्होंने करोड़ों रुपये की फंडिंग देकर ये सरकार बनवाई है. बीजेपी ने चुनाव आयोग को बताया तो है कि कॉरपोरेट ने चुनाव में उन्हें कितना फंड दिया. लेकिन ये लोग कभी नहीं कहते कि डोनेशन के लिए हमें डराया जा रहा है क्योंकि उस समय ये लोग अपने लिए 'संरक्षण' और सरकार में दखल रखने की उम्मीदें ख़रीद रहे होते हैं."
गुरुस्वामी कहते हैं, "लगातार गिर रहे जीडीपी के नंबरों और अर्थव्यवस्था में सुस्ती को आधार बनाकर उद्योगपति पहले ही सरकार से कॉर्पोरेट टैक्स में छूट ले चुके हैं. हो सकता है कि बजाज जिस डर का ज़िक्र कर रहे हैं, उसे आधार बनाकर उद्योगपति फ़िलहाल बैकफ़ुट पर चल रही सरकार से किसी नई रियायत की माँग करें."

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